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अर्थ : हिंदू धर्म की एक संकल्पना जिसमें प्रत्येक व्यक्ति को अपने जीवन में तीन ऋणों से मुक्त होना ही पड़ता है।
उदाहरण : देवऋण, पितृऋण और ऋषिऋण इन्हें ऋणत्रय कहा जाता हैं।
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